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पावन करो नयन ! / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
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रश्मि, नभ-नील-पर,
सतत शत रूप धर,
विश्व-छवि में उतर,
लघु-कर करो चयन !
प्रतनु, शरदिन्दु-वर,
पद्म-जल-बिन्दु पर,
स्वप्न-जागृति सुघर,
दुख-निशि करो शयन !