पावन दृष्टि संजो कर देखो / राजेश शर्मा
पावन दृष्टि संजो कर देखो,आनन-आनन दरपन है,
कण-कण कान्हा ,राधा तृण-तृण, कानन-कानन मधुबन है.
प्रकट करे मन की अभिलाषा ,संकेती लिपि मौन की भाषा.
नमन विदाई का नयनों में, पुनर्मिलन की किंचित आशा.
साँझ की सुरतें कब लौटेंगी, प्रश्न नहीं आमंत्रण है.
मन प्यासा, नयनों में पानी,सावन की कैसी मनमानी.
बंदनवारी मनुहारों से, गीले आँचल की अगवानी.
नेह के पनघट पर बरसे जो वो सावन ही सावन है.
पुलक ,प्रेरणा भोर की लाली ,छंद-छंद पूजा की थाली.
आखर-आखर,रोली अक्षत ,संकल्पी क्षण मन भूचाली.
अंजुलियों में गंगा जल है, मन प्राणों का तर्पण है.
नहीं निरापद कोई कोना, व्यर्थ हुआ बनवासी होना.
पल-पल दिखलाती है तृष्णा, कंचन मृग का नन्हा छोना.
विवश हुई लक्ष्मण -रेखाएं ,मन सीता ,मन रावन है.