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पावन मंसूबा / त्रिलोचन

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पंडा रामप्रसाद ने कहा, धर्म जगा है,
धर्म विरोधी देखें, धर्म नहीं डूबा है,
गंगा यमुना के घाटों पर ठाट लगा है
सहज विरागी भी विराग से अब ऊबा है ।
धर्म कर्म का बढ़ने वाला मंसूबा है
संगम, महाकुंभ फिर तीर्थराज ये तीनों
अलग अलग भी दुर्लभ हैं, पावन दूबा है
अभिषेचन के लिए । उमंग से भरे दीनों
के दल पर दल आते हैं । अवमानित, हीनों
के जीवन प्रसून खिलते हैं । सब नर नारी
भूले हुए चले आते हैं, पथ पर बीनों
को छेड़ कर गा रहे हैं, बिसरी लाचारी ।

धर्म न होता तो वह दुनिया कैसे होती,
पुण्य न होता तो प्रवृत्ति क्या ऐसे होती ।