भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पावस परम उछाह सधन घन आयल रे / मैथिली लोकगीत
Kavita Kosh से
मैथिली लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
पावस परम उछाह सधन घन आयल रे
प्यारे, नयनक रस गरि खसल सरोज सुखायल रे
अभरन जत छल झामर, पति मोर पामर रे
प्यारे, चिकुर बनल शतनाग करथि तन सामर रे
से दिन सुमिरन आबय सेज ने भाबय रे
प्यारे, करतल बदन समेटि साठि पल कानय रे
जेठ हेठ नब बादर युवतीक आदर रे
प्यारे, दछिन पवन बहु मंद करथि अति कातर रे
मास आषाढ़क बारिस मद - रस पाटत रे
प्यारे, हृदयक देल दुहु फाटत शशि कर काटत रे
साओन परम भयाओन कठिन मिलाओन रे
प्यारे, एकसरि रुदन अटारि कठिन निशि साओन रे
भादव आयल मादक दादुर बाहक रे
प्यारे दिशि-दिशि रमथि मयूर विरह तन बाढ़त रे
कुमर कखन पिउ आओत विरह बिसारत रे
प्यारे, उजरल सदन समारत प्रीति पसारत हे