भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पास आकर जरा मुझ से भी तो पहचान करो / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
पास आकर जरा मुझ से भी तो पहचान करो
अपने दिल मे मेरे ख़्वाबों को भी मेहमान करो
रोज़ ही माँगने वालों की भीड़ होती यहाँ
साँवरे इनको भी अपनी दया का दान करो
ज़िन्दगी रोज़ नये रूप की मोहताज़ रहे
रूप कोई भी हो सूरत पे न अभिमान करो
हो जो मुमकिन तो दर्द बाँट लो दुनियाँ के सभी
ख़्वाब में जा के किसी को न परेशान करो
दोस्त मानो मगर नीयत जरा टटोल तो लो
हाथ दुश्मन के नहीं अपना गिरहबान करो
काम वो करके दिखा दो कि जहां मान ही ले
अपना हर देश से ऊँचा सदा निशान करो
कब्र में जा के किसी नफ़रतों को आओ सुला
अपने गुस्से की ये ढीली जरा कमान करो