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पास आकर जरा मुझ से भी तो पहचान करो / रंजना वर्मा

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पास आकर जरा मुझ से भी तो पहचान करो
अपने दिल मे मेरे ख़्वाबों को भी मेहमान करो

रोज़ ही माँगने वालों की भीड़ होती यहाँ
साँवरे इनको भी अपनी दया का दान करो

ज़िन्दगी रोज़ नये रूप की मोहताज़ रहे
रूप कोई भी हो सूरत पे न अभिमान करो

हो जो मुमकिन तो दर्द बाँट लो दुनियाँ के सभी
ख़्वाब में जा के किसी को न परेशान करो

दोस्त मानो मगर नीयत जरा टटोल तो लो
हाथ दुश्मन के नहीं अपना गिरहबान करो

काम वो करके दिखा दो कि जहां मान ही ले
अपना हर देश से ऊँचा सदा निशान करो

कब्र में जा के किसी नफ़रतों को आओ सुला
अपने गुस्से की ये ढीली जरा कमान करो