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पास होकर भी तुम से बहुत दूर हूँ / उर्मिल सत्यभूषण
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पास होकर भी तुम से बहुत दूर हूँ
कैसी मजबूरी है, क्यों मज़बूर हूँ
एक पत्थर की मानिंद बेनूर हूँ
नूर पाकर तेरा कोहेनूर हूँ
प्रेम सागर है तू, मैं प्यासी नदी
मुझको अपना बनाया मैं, मशकूर हूँ
बनके हमदर्द बांटा करूँ दर्द मैं
रहमतों से तेरी मैं भरपूर हूँ
मैं न रहती किसी को उर्मिल मैं क्यों
हो चली ‘मैं’ नशे में मगरूर हूँ।