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पिंजरे में बन्द शेर / नाज़िम हिक़मत
Kavita Kosh से
लोहे के पिंजरे में क़ैद इस शेर की तरफ़ देखो
ज़रा गहराई से झाँको इसकी आँखों में :
गुस्से से चमकते हुए
जैसे दो नग्न खंजर ।
पर वो कभी भी अपना स्वाभिमान नहीं खोता
हाँलाकि उसका गुस्सा
आता है, जाता है
जाता और आता है ।
पट्टे के लिए कहीं जगह नहीं दिखेगी तुम्हे
उसकी मोटी झबरी अयाल के इर्द-गिर्द ।
हाँलाकि चाबुक के निशान
अभी भी चमक रहे हैं
उसकी पीली पीठ पर
उसके लम्बे पैर
खुलते हैं, बन्द होते हैं
ताम्बे के शिकंजे के आकार में ।
उसकी अयाल के बाल एक-एक कर उठते हैं
उसके गर्वित सिर के इर्द-गिर्द
उसकी नफ़रत
आती है, जाती है
जाती और आती है .....
क़ैदख़ाने की दीवार पर
मेरे भाई की परछाईं
हिलती है
ऊपर और नीचे
ऊपर और नीचे ....
अंग्रेज़ी से अनुवाद : मणि मोहन