पिंजरों में सदा क़ैद न रहते हैं परिन्दे / अनु जसरोटिया
पिंजरों में सदा क़ैद न रहते हैं परिन्दे
दर खुलते ही उड़ते हुये देखे हैं परिन्दे।
लगता है कि छू लेंगे अभी नील गगन को
आकाश में किस शान से उड़ते हैं परिन्दे।
इस देश के रंगीन नज़ारों को तो देखो
हर रंग के इस देश में मिलते हैं परिन्दे।
सरहद के ये उस पार चले जाते हैं बेख़ौफ़
हम सोचते हैं हम से तो अच्छे हैं परिन्दे।
ले उड़ते हैं पिंजरों को अगर दम हो परों में
ख़ुद अपने मुक़द्दर को भी लिखते हैं परिन्दे।
मा'सूम हैं फ़रियाद भी ये कर नहीं सकते
मत इन को सताओ ये परिन्दे हैं परिन्दे।
क़ुदरत ने इन्हें गीत-निगारी जो अता की
हर सुब्ह नया गीत सुनाते हैं परिन्दे।
जागीर समझ कर वो इन्हें पुरखों की अपने
खेतों में बड़ी शान से उतरे हैं परिन्दे।
बच्चों के लिये लाये हैं कुछ चोंच में रख कर
दिन भर की उड़ानों से जो लौटे हैं परिन्दे।
समझो कि ये आसार हैं बारिश के 'अनु जी'
जिस वक्त की मिट्टी में नहाते हैं परिन्दे।