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पिंजर में बिन्धा हुआ है / नवनीता देवसेन / मीता दास
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पिंजर में बिन्धा हुआ है
नशे का ज़हरबुझा काँटा
हिसाब यहाँ सब टालमटाल है ।
भीषण अभिशाप से
आसमान और मिट्टी काँप रही है
धुएँ से ढकती जा रही है चारों दिशाएँ
पलक झपकते ही उड़ जाता है ठिकाना, घर-द्वार
पुराने चीन्हे-पहचाने आखर सब
अब चिट्ठी आने पर कौन पढ़ेगा
भाषा तो भूल ही गई हूँ प्रेम की
जाने कब इस मैदान में खुली हवा खेले ।
आग में जल जाए सन-तारीख़
मैं तो बैठी हुई हूँ घुटनों पे सर रख
देखने कि माँ का चेहरा था कैसा ?
पिंजर में बिन्धा धा हुआ है
नशे का ज़हरबुझा काँटा
हिसाब सभी टालमटाल है
माँ ! तुम जगी हुई हो न ?
माँ ! तुम ज़िन्दा हो न !
पैरों के नीचे
वह शरीर किसका है ? !
मूल बाँगला से मीता दास द्वारा अनूदित