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पिअबा जे कहि गेल जेठ मास आयब, / मैथिली लोकगीत

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मैथिली लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

पिअबा जे कहि गेल जेठ मास आयब,
बीति गेल मास अखाढ़ सखि
बाट रे बटोहिया कि तोंही मोर भइया,
हमरो समाद नेने जाउ सखि
हमरो समदिया भइया पिया जी केँ कहि देब
धनी भेल अलप बएस सखि
बाट रे बटोहिया कि तोहीं मोर साला,
हमरो समाद नेने जाउ सखि
हमरो समाद साला धनी जी के कहि देब
छतबा देत एक भेजि सखि
घर पछुअरबामे डोमा एक भइया,
छतबा दैह एक बूनि सखि
नहि मोरा छैक सुन्दरि बाँस-बसुलिया,
नहि मोरा बुनहुक लूरि सखि
घोड़बा चढ़ल अबथिन एक रे मोसाफिर,
एक लोटा पानि पिआउ सखि
नहि मोरा छैक रेशमक डोरिया,
नहि मोरा भरहुक लूरि सखि
केये देलकह आहे गोरी नीले रंग सरिया,
केये देलकह चोली बूटेदार सखि
बाबा देलकै आहो मोसाफिर नीले रंग सरिया
भइया देलकै चोली बूटेदार सखि
हमरो पुदारि किए करै छी मोसाफिर,
हमरहु भेल बिआह सखि
हमरो बालमु जी केँ मुठी एक डांर छनि
जइसे चलय अंगरेज सखि