पिग्गी बैंक / मनोज शांडिल्य
तहिया
बालीगंज टीसनक लग
कलकत्ता ट्राम कंपनीक कैंटीन मे
जहिया खाइत रही पाँच टका मे भरि पेट
दालि-भात-तीमनि
अल्लूक भुजिया,
पापड़, आ पाती नेबोक संग
कहाँ लागल रहय भाँज
जे भ’ जेतै एहि पँचटकहीक अस्तित्व ओहने
जेहन होइत छैक ओहि बापक
जे अपन सर्वस्वक बलिदान द’ भ’ जाइत अछि बूढ़
आ जाहि सन्ततिक लेल
अचांचके भ’ जाइत अछि वृद्ध
से सभ भ’ जाइत छैक एकसरे समृद्ध
धिया-पुता झकझक न’ब
माय-बाप अक्कत पुरान!
ने होयबाक कोनो मोल
ने जीबाक कोनो पहिचान
मुदा हमरा अनुभव देलक संग एहि बेर
काल्हि जखन
निर्माणाधीन हैदराबाद मेट्रोक
कुकटपल्ली टीसनक लग
किनलहुँ सय टका मे एक किलो लोकल आम
तँ घर पहुँचते राखि लेलहुँ एक टा नमरी सम्हारि क’
बाल्यकालीन पुरातात्त्विक पिग्गी बैंक मे
जाहि मे रखने छी बड्ड जतन सँ
मिस्रक ‘मम्मी’ सन जोगा क’
कतेको एकपैसी, दूपैसी, पँचपैसी, दसपैसी
चौअन्नी, एकटकही आ दूटकहीक लहास
काल्हि ठीके देखलहुँ हम
बूढ़ होइत सय टकाक नोटकेँ
आ आइ भोरे तैयार होइत ऑफिसक लेल
जखनहि देखलहुँ अपन प्रतिबिम्ब अएना मे
तखनहि सँ ठेकना रहल छी भरि शहर मे
एक ठीक-ठाक सन पिग्गी बैंक
अपना लेल