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पिघलाव / मोना गुलाटी

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जब तक शब्द नहीं उगेंगे; बीज नहीं
बन पाएगा : शब्दों को होना होगा
उन्माद : बेहोश कर देने वाला
पागलपन :

मैंने नहीं चुने हैं कोई प्रतीक
तुम्हारे लिए : तुम
हवा की सरसराहट
के साथ काँपते हुए
पहाड़ के नीचे जाती
पगडण्डी के साथ
गुम हो जाते हो !

मुझे तुमने नहीं
दी कोई चमकदार
रोशनी जो ढूँढ़ सके तुम्हें
किसी भी अन्धेरे में ! अन्धेरा
जो हमेशा
सुनसान में पत्तों के साथ-साथ
बजता है और मुझे
भयाक्रान्त करने
की चेष्टा करता है !

तुमने मेरी तन्द्राओं को प्रगाढ़ किया है
जहाँ बेबस होकर मैंने अपने को
छोड़ दिया है। मुझे लगा
बार-बार
कि मेरे पास न कोई जिस्म है, और
न ही कोई आवाज़
मैंने ख़ुद को
पिघलता हुआ लावा नहीं
समझा है और न ही
मेरे भीतर हुआ है
किसी ज्वालामुखी का विस्फोट ।
मात्र इतना हुआ है कि पहाड़ों
के पीछे से रौशनी का एक आकार
मुझमें डूब गया है और
मैंने किल्लोल करती नदियों, नालों व
झरनों के साथ अपने को
दौड़ते पाया है ।

मेरा जिस्म
पिघल गया है
हिमखण्ड-सा !
मुझे अपना कुछ
पता नहीं लगता !

तुम
कौन हो ? : तुमने
मुझे उन्मादित ढंग से
कर दिया है विवश !