पिछला आँगन / विपिन चौधरी
घर के अगले आँगन में
खुशियों की गुलदावदी खिला करती हैं
तो पिछले आँगन में
स्त्रियों के सुख-दुःख की सांझी परछाईंयां उतरती हैं
तीन पीढ़ियों की स्त्रियां
इसी पिछले आँगन में
छोटी- बड़ी पीढ़ों पर बैठ सुस्ताया करती हैं
ननद, देवरानी के सिर के जुएं निकालती है
बहु, सास के गठियाग्रस्त पांवों पर गर्म तेल मलती है
दो-तीन आड़ी-तिरछी रस्सियों पर अलसाते हैं
ढेरों गीले कपडे
इसी पिछले आँगन में सूखती हैं
हल्दी की गांठे और गीली-सीली लाल मिर्चें
स्त्रियों के साथ ही सुस्ताया करते हैं
झाड़ू-पौंचे और टूटे कनस्तर
फोल्डिंग चारपाईयों पर धूप लगवाते
गर्म कपड़ों के साथ ही स्त्रियां
अपने मन को भी हवा लगवा लेती हैं
थोड़ी तरो-ताज़ा होकर
घर के आहते में प्रवेश करते हुए
शाम की चाय के लिए
ज़ोर से आवाज़ देते हुए पूछती हैं
" चाय कौन-कौन पियेगा"