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पिछले दिन / चंद ताज़ा गुलाब तेरे नाम / शेरजंग गर्ग

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कुछ ऐसे गुज़र गये
पिछले दिन

कभी नहीं जुड़ पायें, जैसे
स्वप्निल सम्पर्क
अपने ही सत्यों पर वार करें
ज्यों अपने तर्क,
द्वार पर उमीदों के
लिखा हुआ हो, मानो
नामुमकिन!

कुछ ऐसे गुज़र गए
पिछले दिन!