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पिछले पहर के चाँद से / मख़दूम मोहिउद्दीन
Kavita Kosh से
लज़्ज़ते आग़ोशे शब<ref>रात के आलिंगन के आनंद से</ref> से थक गया है माहताब
रात की रानी ने उससे छीन ली रुहे शबाब<ref>यौवन की आत्मा</ref> ।
लड़खड़ाता ऊँघता है जानिबे मग़रिब<ref>पश्चिम की ओर</ref> रवा<ref>जाता है</ref>
ज़र्द चेहरे पर अयाँ<ref>प्रकट होना</ref> लब हाय लैला के निशाँ ।
रिन्द-ए-शब<ref>शराबी रात</ref> बेदार<ref>जागी हुई है</ref>, जा सो जा, सियाही ओढ़कर
ख़्वाबे-शीरीं के मज़े ले पहलुए शब छोड़कर ।
मौत तेरी, ज़िंदगी-ए-महर का पैगाम<ref>सूर्य के जीवन का समाचार</ref> है
मरमरीं दस्ते-सहर<ref>सुबह के हाथ</ref> में देख रंगीं जाम है ।
शब्दार्थ
<references/>