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पिछाण / सांवर दइया
Kavita Kosh से
तर्क रो बीज
ऊग्यो सवाल रो रूंख बण’र
असली आदमी री
पिछाण कांई
प्रेम रै पाणी सूं तर
हीयै री धरती
दियो उथळो-
दूजां खातर जीवै
बस आ ई !