भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पिताजी-२ / ओम पुरोहित ‘कागद’

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आजकल के नौजवान
हमेशा
थमाए रखते हैं
अपनी कलाई
नाडी़ वैद्य के हाथों में !

हमारे वक्त में
ऐसा नहीं था
बला के दिलेर होते थे
हम
जब जवान होते थे !

यह बताते हैं पिताजी
दमें की बलगम को
कंठ में उतार कर !
बडी़ माता के कारण
फ़ूटी आंख से
बहते पानी को पौंछ
घुटनों पर
हथेलियां रख
उठते हुए !

अनुवाद-अंकिता पुरोहित "कागदांश"