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पिता, मुर्गियों के धड़ और देवता / नवल शुक्ल
Kavita Kosh से
हर गाँव से आठ गाँव तक
चलती पगडंडी पर
आता है गाँव
सबसे पहले देवता
साथ में पुजारी
चूजे और मूर्गियाँ
फिर गुणीजन
तब पिता और सारा गाँव
सारे देवता बैठे रहेंगे
अजीब नाम अद्भुत्त शक्ल
विचित्र कथाओं के साथ
टपकता रहेगा रक्त
मरते रहेंगे चूज़े
फड़फड़ाती रहेंगी मुर्गियाँ
यहीं होंगे गुणीजन
यहीं से शुरू होगा नाच।
जब ऊपर होगा चढ़ता एक चांद
तब जंगल, खेत, पहाड़ और नदियों से तनी
हर गाँव से आठ गाँव की
पगडंडी पर
नाचता चलेगा गाँव
उंगलियों से अंधेरा हटाते पिता
लड़खड़ाते गुणीजन
मरे चूज़े
मुर्गियों के धड़ और देवता।