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पिता-3 / चंद्र रेखा ढडवाल

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पिता (तीन)

पिता ! मेरी आँखें तो खोजती रहीं केवल
तुम्हें
दिन ढले आँखों की फैली-फैली आँखों की लाली में
दहाड़ती आवाज़ की भयावहता में
माँ की पीठ पर पड़ती सटाक की आवाज़ में
और सुबह- सुबह
रात की ख़ुमारी से उत्पन्न
उनींदेपन में कौंधती
बेआवाज़-सी पहचान में.