भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पिता आप / संतोष मायामोहन
Kavita Kosh से
					
										
					
					पिता आप 
आप ही मां जाए भाई
आप ही मेरी भाभी के घर-
बालक ।
आप स्थिर
युगों-युगों से मेरे पिता 
दूध चूंघते मेरी भाभी के स्तनों !
अनुवाद : नीरज दइया
 
	
	

