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पिता और सूर्य-3 / अमृता भारती
Kavita Kosh से
मैं फिर चित्र में खड़ी हो गई हूँ
और वे फिर चित्रित करने लगे हैं अँधेरे
मेरे आसपास
यह केवल एक क्षण की बात है
अब मैं चित्रित नहीं हो सकती
आदमी के अन्धे कन्वासों पर
बस एक क्षण और
मैं फिर हूँगी, पापा
श्वेत सामंजस्य के बीच
आपके सम्पूर्ण बग़ीचे में ।