भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पिता और सूर्य-4 / अमृता भारती
Kavita Kosh से
वसन्त का पाँचवा दिन
झर रहे थे पत्ते --
झर-झर-झर
मेरा 'आतपत्र' भी झर गया, पापा
आपके साथ-साथ
मीलों लम्बी धूप
अब सिर पर भी होगी ।