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पिता की जेब देखें और मेला छोड़ देते हैं / अविनाश भारती

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पिता की जेब देखें और मेला छोड़ देते हैं,
गरीबी में यहाँ बच्चे खिलौना छोड़ देते हैं।

ख़ुशी क्या है यहाँ ग़म क्या पता उसको कहाँ यारो,
ज़माने में जिसे अपने जो तन्हा छोड़ देते हैं।

मिले हो तुम अगर जिसको किसी दर पर वह क्यों जाये,
मोहब्बत की करें बातें झमेला छोड़ देते हैं।

न आया बेटियों के हाल पर अब तक तरस जिसको,
वतन उसके भरोसे हम ये अपना छोड़ देते हैं।

सुना है लोग करते हैं बहुत ही याद शिद्दत से,
चलो हम भी खुशी से ये ज़माना छोड़ देते हैं।

बनाता है यहाँ जो क़ाफ़िला 'अविनाश' मेहनत से,
उसी को क़ाफ़िले वाले अकेला छोड़ देते हैं।