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पिता की तस्वीर / अनिल गंगल

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घर के शो-केस में फ़्रेम में जड़ी तस्वीर
पिता की है

तस्वीर में पिता
आशीर्वाद की मुद्रा में मुस्करा रहे हैं
तथास्तु में उठा उनका दायाँ हाथ
परिजनों को आशीर्वाद दे रहा है
कि जैसे ईश्वर ने पूर्ण कीं उनकी तमाम मनोकामनाएँ
और लालसाएँ
वैसे ही हम सब भी हों पूर्णकाम

फ़्रेम से झाँकते हुए
निगाह रखते हैं वह हमारी कारगुज़ारियों पर
महावत के अंकुश की तरह रोकते हैं वह
हमारे पाँवों को डगमगाने और राह भटकने से

इसी तस्वीर में से झाँकता है
वल्कल वस्त्र धारण किए पिता का हमशक़्ल
जो विश्वात्मानन्द या अवधूतानन्द कुछ भी हो सकता है
मगर पिता नहीं

अपनी आख़िरी साँस तक मैं
फ्रेम में जड़ी तस्वीर में
सिर्फ़ और सिर्फ़ गृहस्थी की ज़िम्मेदारियाँ निभाते
बार-बार टूटते और टूट कर फिर-फिर खड़े होते
पिता को देखना चाहता हूँ।