पिता की मृत्यु पर / अजित सिंह तोमर
पिता की मृत्यु पर
जब खुल कर नही रोया मैं
और एकांत में दहाड़ कर कहा मौत से
अभी देर से आना था तुम्हें
उस वक्त मिला
पिता की आत्मा को मोक्ष।
पिता की अलग दुनिया थी
मेरी अलग
दोनों दुनिया में न कोई साम्य था
न कोई प्रतिस्पर्धा
जब पिता नही रहे
दोनों दुनिया के बोझ तले दब गया मैं
मेरी आवाज़ कहीं नही पहुँचती थी
मुझ तक भी नही।
कोई भी गलत काम करने से पहले
ईश्वर का मुझे लगता था बहुत भय
पिता की मौत के बाद
ईश्वर का भय हुआ समाप्त
और पिता का भय बढ़ गया
इस तरह ईश्वर अनुपस्थित हुआ मेरे जीवन से
पिता के जाने के बाद।
पिता के मर जाने पर
मनुष्य के अंदर का पिता डर जाता है
वो जीना चाहता है देर तक
अपने बच्चों के लिए
भले जीते जी वो कुछ न कर पाए
मगर
मर कर नही बढ़ाना चाहता
अपने बच्चों की मुश्किलें।