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पिता जी ( शब्दांजलि-४) / नवनीत शर्मा

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डायरियों पर आकृतियाँ बनाते हैं बच्‍चे

पहनते हैं दादा की ऐनक़

जिससे दिखते थे

उर्दू के कुछ मीठे शब्‍द

बच्‍चों को आता है चक्‍कर

शीशम के बने टेबल लैंप से खेलते हैं जगाना-बुझाना

छुटकी के बस्‍ते में पड़े हैं चायनीज़ पैन के टुकड़े

अब रोकता नहीं कोई

अब टोकता नहीं कोई.