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पिता जी ( शब्दांजलि-६) / नवनीत शर्मा
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कितने ही साल से ख़ामोश है
चिठ्ठियों पर
पुतने वाली गोंद
कोई नहीं पूछता
कविता का मिजाज़
पिछवाड़े पड़ा बालन
उसकी खपचियाँ
भूल गई हैं ड्रिफ़्टवुड से अपना रिश्ता
कोई नहीं कहता
हरियाली से बचना
फूल की तारीफ़ के बाद
नहीं रुकना फूल के पास
नहाते हुए लगाना नाभी पर तेल .