भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पिता बोले थे / हरीश करमचंदाणी
Kavita Kosh से
पिता बोले थे
सदा सच बोलना
मैं झूठ कभी नहीं बोला
पिता बोले थे
हमेशा ईमानदार रहना
मैंने बेईमानी नहीं की कोई
पिता बोले थे
न्याय के संग साथ रहना
मैंने अन्याय का दामन कभी नहीं थामा
पिता बोले थे
सदा सुखी संपन्न रहना
पिता की हर बात मानना क्या संभव भी है ?