पिता लेली त्याग / सुरेन्द्र प्रसाद यादव
लगातार जग मेॅ परिवत्र्तन प्रकृति रोॅ नियम छेकै
सही सत्य नियम पालन रोॅ प्रतीक छेकै ।
आय जीवन वास्तें जे अप्रिय छेकै
वही कल केरोॅ वास्तें प्रिय होय छै ।
प्रतिदिन निकट रोॅ वस्तु दूर छै
दूर केरोॅ वस्तु अति समीप छै ।
छोटोॅ-छोटोॅ घटना आवी केॅ मिलै छै
कुछ क्षणोॅ के बाद पृथक-पृथक होय जाय छै ।
कोय चीज जग मेॅ हमेशा साथ रहै छै
हमेशा साथ रहना असंभव लागै छै ।
महाभिषेक नेॅ ब्रह्मा सभा मेॅ अवमानना करलकै
गंगा लेली नियम रोॅ उल्लंघन करलकै ।
गंगा नेॅ सात वसुओॅ केॅ जन्म देलकै
सातोॅ केॅ जन्मोॅ रोॅ बाद गंगा मेॅ फेंकी देलकै ।
शांतनु सेॅ गंगा नेॅ पहिले शपथ खिलैलकै
गंगा केरोॅ प्रतिज्ञा केॅ शांतनु अवमानना करलकै ।
आपनोॅ आठवां पुत्रा गंगा
आपनोॅ साथ लै केॅ चल्लोॅ गेलै ।
शांतनु राजोॅ मेॅ प्रजा बड़ी खुशहाल छेलै
केकरोॅ केॅ केकरोॅ प्रति राग द्वेष नै छेलै ।
अपार शक्ति रोॅ भंडार पृथ्वी पर पड़लोॅ छेलै
हिनकोॅ धर्मज्ञान, सत्यवादी सरल, प्रसिद्धि छेलै ।
हिनकोॅ राजोॅ मेॅ मानव, जीव-जन्तु सब्भे खुश छेलै
कोय अनाथ दुखी हिंसा सेॅ दूर छेलै ।
प्रजा सब्भे धर्म परायण सेॅ परिपूर्ण छेलै
सब्भे राजा हिनका राजेश्वर रोॅ पदवी देने छेलै ।
देवव्रत केॅ देखै लेली, शांतनु आतुर छेलै
होकरोॅ चेहरा, हिनका नजरोॅ मेॅ थिरकै छेलै ।
कल्पना रोॅ सागर मेॅ डूबै-उतरै छेलै
धर्मनिष्ठ पुरुषोॅ केॅ साक्षात देखै लेॅ तरसै छेलै ।
शांतनु केॅ भगवान रोॅ विधान पर विश्वास छेलै
अभिलाषा पूरा होय मेॅ कुछ विलम्ब छेलै ।
राजर्षि शांतनु ! भटकते हुवेॅ गंगा तट पर गेलै
प्रकृति के आनंद में समाय गेलै ।
गंगा रोॅ जल बड़ी तेजी सें घटी रहलोॅ छेलै
है दृश्य देखी केॅ विचित्रा भान होलोॅ छेलै ।
कुछ दूरोॅ पर सुगठित शरीर वाला छेलै
लम्बा, चैड़ा, डील-डौल तन वाला छेलै ।
हौ बालक न आपनोॅ बाणोॅ सें गंगा रोॅ धार रोकलकै
दिव्य अस्त्रोॅ रोॅ प्रयोग करी केॅ देखलकै ।
शांतनु केॅ जन्मोॅ रोॅ समय एक झलक देखने छेलै
देवव्रत रोॅ है काम देखी केॅ अचंभित होय गेलै ।
हौ बालक पिता केॅ प्रणाम करनें छेलै
मने-मन पिता केॅ प्रणाम करनें छेलै ।
आकर्षित करै वास्तें, अन्तध्र्यान होय गेलोॅ छेलै
आश्चर्य चकित होय केॅ शांतनु ढूंढै लागलोॅ छेलै ।
तेजस्वी बालक किनकोॅ संतान छेकै
गंगा अभिभूत होय गेलै राजा रोॅ प्रार्थना सुनलकै ।
गंगा अधिष्ठात्राी, वस्त्राभूषणोॅ सेॅ सुसज्जित छेलै
देवव्रत राजा रोॅ सामने ऐलै, दाहिना हाथ पकड़ने छेलै ।
देवी बोललैµ अठमा पुत्रा हमरोॅ गर्भ सेॅ उत्पन्न होलोॅ छै
सब्भे विद्या रोॅ परिपूर्ण अध्ययन करने छै ।
युद्ध मेॅ कोय वीर हेकरा सामना मेॅ नै टिकै पारतै
वीर्य, विक्रम अपार छै, मुकाबला नेॅ करे पारतै ।
वशिष्ठ नेॅ हेकरा वेद-वेदांगोॅ रोॅ अध्ययन कराय देनें छै
असुरोॅ, देवता आरोॅ गुरु सेॅ विस्तार अध्ययन करनें छै ।
परशुराम, दिव्य, अमोध, अस्त्रा-शस्त्रा देनें छै
संयमी, सदाचारी, भगवत भक्ति, सब ज्ञानोॅ सें भरनें छै ।
है तेजस्वी बालक, आपने केॅ सुपुर्द करै छियै
पुत्रा पावी केॅ प्रसन्न होलै, हम्में आपनें रोॅ धर्मपत्नी छियै ।
सब्भे प्रजा देवव्रत केॅ पावी केॅ हर्षित होलै
देवराज केॅ युवराज बनाय केॅ सुखद अनुभूति होलै ।
शांतनु केॅ विषय-वासना रोॅ मनोॅ मेॅ जागृति होलै
सांसारिक चक्कर मेॅ नै पड़तै, आशा नै करने छेलै ।
यशस्वी पुत्रा पावी केॅ समय भजन भक्ति मेॅ बिताय छेलै
विवाह कराय रोॅ ईश्वर रोॅ असीम कृपा छेलै ।
विशाल देश केॅ चलावै लेली वंश सृष्टि जरूरी छेलै
शांतनु अर्कजा रोॅ तट पर चक्कर लगाय छेलै ।
अपूर्व सुगंध सेॅ प्रसन्न होय रहलोॅ छेलै
आगू बढ़ला पर पानी रोॅ किनारा मेॅ खड़ी कन्या छेलै ।
सम्राट मोहित होय गेलै, अपूर्व सुन्दरी देखी केॅ
तोहें केॅ छेकोॅ ! यहाँ कैहिनें ऐलोॅ छोॅ मुस्कुराय केॅ ।
हम्में वशा राजा रोॅ बेटी छेकियै, आगन्तुक केॅ पार करै छियै
तोरा कालिन्दी पार होना छै, करी दै छियौं ।
अति सुन्दरी देखी केॅ लट्टू होय गेलै
आपनोॅ इच्छा प्रकट करी केॅ निषाद रोॅ पास गेलै ।
लड़की केकरोॅ साथ प्रणय सूत्रोॅ मेॅ बंधियै जैतै
आपनें रोॅ साथ होय जाय तेॅ सौभाग्यवती होय जेतै ।
कन्यादान करै मेॅ हम्में तत्पर होय जैवै
लड़की रोॅ विवाह केकरोॅ सेॅ जरूरे करवै ।
आपनें सत्यवादी छियै, हमरा यकीन छै
आपनें रोॅ साथ कन्यादान करै मेॅ अड़चन नै छै ।
शांतनु बोललै, आपने रोॅ मतलब जानै लेॅ चाहै छियै
अन्तरात्मा रोॅ पुकार जाने लेॅ चाहै छियै ।
दास राजाµ बोललै हिनकोॅ गर्भ सेॅ पुत्रा होतै
होकरै आपनें केॅ राजगद्दी दै लेॅ होतै ।
दासराजा रोॅ प्रार्थना सेॅ दिलोॅ मेॅ खींचा-तानी होय छेलै
सुकोमल सुन्दरी कन्या देखी केॅ आकर्षित छेलै ।
मनोॅ में उमंग-तरंग रोॅ वेग उठै छेलै
अचानक देवव्रत रोॅ मुखारबिन्द याददाश्त आवै छै ।
हमरा मुँहोॅ में ताला, गोड़ोॅ में बेड़ी लागी गेलोॅ छै
मायूस हतोत्साह होय केॅ राजधानी लौटलोॅ छै ।
अपूर्व सुन्दरी केॅ देखी भूलवां नै भूलै छै
दोनोॅ तरफोॅ सेॅ चिंता मेॅ डूबलोॅ छै ।
देवव्रत पिता रोॅ मायूस चेहरा देखै छै
हिष्ट-पुष्ट शरीरोॅ मेॅ उदासी कहिनें ऐलोॅ छै ।
पिता आपनोॅ चिंता मेॅ डूबलोॅ छेलै
कत्ते दिनोॅ मेॅ उदास चेहरा बनाय केॅ राखने छेलै ।
शरीरोॅ रोॅ कांति मलीन होय रहलोॅ छेलै
पीला, शिथिल, रुग्न नांखी लागै छेलै ।
आपनें सही-सही बताय रोॅ कोशिश करवै
खिन्नता, अभाव, उदासी रोॅ कारण बतावै ।
तोहों एक पुत्रा दोहोॅ,
अस्त्रा-शस्त्रा मेॅ पारंगत बनाय केॅ
तोहें अकेले सौ पुत्रोॅ मेॅ श्रेष्ठ छौं
हम्में आबेॅ विवाह नै करवोॅ, पुत्रोॅ मेॅ तोहें श्रेष्ठ छौं ।
तेजस्वी पुत्रा, पिता रोॅ भाव-भंगिमा समझी गेलै
हितैषी मंत्राी सें पिता के बारे मेॅ पूछै लेॅ गेलै
उदासी रोॅ सही पता लगाय लेलकै
देवव्रत बूढ़ा क्षत्रिय मंत्राी केॅ लेलकै ।
दासराज नेॅ सब्भे आगंतुक रोॅ स्वागत करलकै
देवव्रत पिता वास्तें सत्यवती रोॅ याचना करलकै ।
दासराज बोललैµ भारत वंशियों मेॅ आपनें श्रेष्ठ छियै
आपनें पर यकीन करना हमरोॅ धर्म छियै ।
पराशर नेॅ सत्यवती केॅ सुगंधमय बनाय देनेॅ छेलै
हेकरोॅ खामियो, अवगुण सब्भे दूर करी देनें छेलै ।
दास राजाµ बोललै, राजर्षि असित नेॅ कन्या मांगने छेलै
हम्में हुनका दै मेॅ असमर्थ जाहिर करलियै ।
आपनें रोॅ पिता केॅ कन्या दै मेॅ हिचकिचाय रहिलोॅ छियै
होकरोॅ कोख सेॅ उत्पन्न पुत्रा राजा नै बनै पारै ।
आपनें रोॅ सामनें, हौ लड़का नगण्य हो छै
देवता, गंधर्व, दैत्य आपने से साधारण होतै ।
है लड़का युद्ध के कालोॅ के गालोॅ में समाय जैतै
आपनें रोॅ सामने मेॅ है लड़का बौना पड़ी जैतै ।
दासराज ! बोललै, शादी करै सेॅ कतराय छियै
पिता लेली भीष्म प्रतीज्ञा करे लेॅ तत्पर छियै ।
शपथ-पूर्वक कहै छियै गद्दी नाती केॅ मिलतों
हमरा गद्दी सेॅ तनियो टा लोभी नै होतौं ।
दासराज केॅ संतुष्ट करलकै, देवव्रत नेॅ
जग मेॅ भीष्म प्रतिज्ञा करलकै देवव्रत नें ।
दासराज नेॅ कहलकैµ धर्मात्मा शांतनु रोॅ पुत्रा छेकोॅ
आपनें पर शंका करना फिजूल छै, श्रेष्ठ वंशज छेकोॅ ।
भीष्म ! बोललै राज्य हम्में पहिलै छोड़ी देनेॅ छियै
आजीवन ब्रह्मचारी बने रोॅ व्रत लेने छियै ।
भगवान रोॅ असीम कृपा हमरा पर छै
हमरा पुत्रा नै होला पर सदगति मेॅ बाधा नै छै ।
भीष्म रोॅ अलौकिक वाणी सुनी केॅ पुलकित होलै
रोम-रोम खुशी सेॅ दासराज केॅ देखी केॅ जाहिर होलै ।
भीष्म रोॅ प्रति कलुषित भावना त्यागी देलकै
सत्यवती केॅ रथ पर बैठाय केॅ हस्तिनापुर लानलकै ।
शांतनु भीतर सेॅ पुलकित होलै
भीष्म रोॅ दुष्कर कर्म सेॅ अभिभूत होलै ।
धरा पर जब तक जीना चाहै छै
तोरा ! मृत्यु स्पर्श नै करै पारै छै ।
शांतनु ! रूप-यौवन सम्पन्न, सुन्दरी देखी केॅ
शुभ तिथि, पतरा सेॅ देखी केॅ शादी रचैलकै ।
भीष्म ! अस्त्रा-शस्त्रा मेॅ पारंगत छेलै
भीष्म बोललै ! जग मेॅ सार छै भगवत भजन छै ।