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पिता / अमिताभ रंजन झा 'प्रवासी'

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पिता बना तो जाना काम नहीं आसान
हर पिता को मेरा शत-शत है प्रणाम।

हर पल मन में एक लगन सदा खुश रहे संतान
पल पल अमृत उसे मिले सो ख़ुद करते विषपान।

टूटे चप्पल पावों में अपने तन पर वस्त्र पुरान
नव वस्त्र बच्चों को मिले जन्मदिवस, होली, रमजान।

अपने इक्षा को परे रख जोड़े पुस्तक का दाम
हो अथक अनगिनत प्रयास दिन रात वह करते काम।

शिक्षा, शक्ति, संस्कार आपसे आज चलू जो सीना तान
मस्तक ऊँचा आपके कारण है सफल पिता का प्रमाण।

क्षमा प्रार्थी हूँ जो भूल हुयी अनजान
त्याग, धर्म की मूर्ति पिता हैं कितने महान।

पिता बना तो जाना ये काम नहीं आसान
प्रिय पिताजी आपको मेरा शत-शत है प्रणाम।