भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पिता / निर्मल आनन्द

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पिता
तुम्हें संधि स्वीकार नहीं
तुम्हारा युद्ध कब समाप्त होगा

तुम्हारे झोले से
निकाल लिया है
किसी ने
अमन की पुड़िया को

मैं जानता हूँ
अकबर-राणाँ जैसा
नहीं होगा तुम्हारा इतिहास
क्योंकि
वे राज्य जीतते थे
तुम रोटी जीतते हो ।