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पितृ-ऋण / राजकमल चौधरी
Kavita Kosh से
हमर पिता छलाह एकटा सार्थक शब्द
हम शब्दक सार्थकताकेँ
अविश्वसनीय कहैत छी
हमर पिता रहैत छलाह मूल्यमेे,
अभिव्यक्तिमे, नीतिमे,
अर्थवत्तामे
हम व्यक्तित्वक मात्र निरर्थकतामे
जीवित रहैत छी
पितृ-ऋणसँ मुक्त होयबाक
आन कोनो उपाय
हमरा नहि अछि
कहिओ नहि हैत
कहिओ नहि हैत
(मिथिला दूत, राजकमल विशेषांक: फरवरी-अप्रील, 1968)