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पिपरिया हम नय खैबै, कडु़ लागै / अंगिका लोकगीत

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

जच्चा से पीपर पीने का आग्रह उसकी सास और देवर द्वारा किया जाता है तथा पीपर के गुण का भी बखान किया जाता है। लेकिन, जच्चा कड़वापन के कारण नजाकत के साथ उसे पीने को तैयार नहीं है। उसके नखरे देाकर उसकी ननद से नहीं रहा जाता। वह हाथ-मुँह चमकाती हुई अपनी प्यारी भाभी पर करारा मजाक कर देती है-‘वाह, पीपर तो कड़वा लगता है, लेकिन भैया की अंकशायिनी बनना अच्छा लगता है,’ ऐसे हास-परिहास के आनंदमय वातावरण में नहीं पीने के हठ पर जच्चा कब तक दृढ़ रह सकती है?

पिपरिया<ref>पीपर</ref> हम नय खैबै<ref>खाऊँगी</ref>, कडु़<ref>कड़वा</ref> लागै।
भनसा<ref>रसोई बनाते समय</ref> करैतेॅ सासु समुझाबथिन, तनि पुतहु खाय लऽ, गुन करथौं हे॥1॥
पूजा करैतेॅ देवर समुझाबथिन, तनि भौजो खाय लऽ, गुन करथौं हे।
देहरि बैठलि ननदो ओठ चमकाबथिन, भैया पलँग भौजो नीक लागै हे॥2॥

शब्दार्थ
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