भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पियारे! तुम ही तुम्हरे जोग / हनुमानप्रसाद पोद्दार

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पियारे! तुम ही तुम्हरे जोग।
तुम्हरे पटतर कहूँ न को‌ऊ सुर-नर, सुख-संभोग॥
राखौ मोहि जहाँ मन भावै, सुरग-नरक-नरलोक।
पै तुम बसौ दृगंचल मेरे, मन-भावन हर-सोक॥
तुम्हरे मधुर-मधुर स्मृति-सुख पै कोटि ब्रह्मा-सुख वारौं।
जोग-सिद्धि केहि लेखे माहीं, वाहि बिघ्र गनि टारौं॥
लागे रहौ सदा हिय सौं पिय! सब बिबिधान-बिहीन।
पूरन प्रान पियारे! तुम महँ रहैं सदा लय-लीन॥