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पिया ऐलै वसंत / कुमार संभव
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पिया ऐलै वसंत
आमोॅ के ठारी पर झूमै छै कंत,
पिया ऐलै वसंत।
ठारी ठारी में मंजरोॅ के कन्नी
भँवरा मंडरावै, मंडरावै छै बिरनी,
गीत महारास के सुनी-सुनी केॅ
मतैलोॅ घूमी-घूमी नाचै छै टिकनी,
चलै छै देखोॅ हवा के रंथ
पिया ऐलै वसंत।
गदरैलो झूमै छै बूट, खेसाड़ी
हमरे पिया छै एक ठो अनाड़ी,
हाँकोॅ दै दे बुलाबै चिकना के धारी
खुलबां नै खुलै छै बज्जड़ किवाड़ी
हमरो दुख छै अनंत,
पिया ऐलै वसंत।
कारी कोयल कू-कू बोलै
भेद ज़िया के रहि-रहि खोलै,
मुन्हाँ से छपरी तांय झूठे के कागा
उड़ी-उड़ी बैठे, उड़ी-उड़ी गगलै,
पिया झूठे के बनलोॅ छै संत
पिया ऐलै वसंत।