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पिया पावस सताय / ऋतुरंग / अमरेन्द्र

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पिया पावस सताय।
हमरा अकेलो-असकल्ली बुझी
घरे एकदम ढुकी जाय।

कस्सै छी साड़ी के कोची जों हम्में
बन्द करौं खिड़की-किबाड़ी जों हम्में
बाहर सें साँढ़े रङ ढकरै कसाय
पिया पावस सताय।

सुतला पर कानोॅ में गरजो जगावै
चोरबत्ती आंखोॅ पर बारी चोंधियावै
देखलौं ने हेनोॅ छिन्हारोॅ-हरजाय
पिया पावस सताय।

बन्द करौं खिड़की तेॅ ऐंगना सें झाँकै
छपरी-केबाड़ी के फांकोॅ सें ताकै
की जान्हौं तोड़ी परछत्ती ढुकी जाय
पिया पावस सताय।

-27.9.95