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पिया फागुन फुलाय / ऋतुरंग / अमरेन्द्र

पिया फागुन फुलाय।
गमगम छै खमखम छै सौंसे ठो गाँब
लेना ऐलै जमाय।

रैचा रोॅ उबटन लगैनें छै धरतीं
तीसी रोॅ चुनरी पिन्हलकोॅ छै परतीं
पुरबा केॅ देलेॅ छै कौनें-बौराय
पिया फागुन फुलाय।

सरसों के माँगोॅ में सीती छै सोना के
पिरका पटोरी छै देहोॅ पर गौना के
ऐलो ससुरारी सें अबकी अघाय
पिया फागुन फुलाय।

कोयल के कू-कू को सगरो उधियावं
पाहुन परदेशी, यें हमरा गरियाबै
आँखी में हास, लोर जो पर छतनाय
पिया फागुन फुलाय।