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पिया बनी हेमंत सखी रे / मुकेश कुमार यादव
Kavita Kosh से
पिया बनी हेमंत सखी रे।
सपना देखावै अनंत सखी रे।
बात करै छै मीठ्ठो-मीठ्ठो।
जेना लागै छै रसिया पीठ्ठो।
हर्षै मन कंत सखी रे।
पिया बनी हेमंत सखी रे।
बारी-बारी।
लहंगा, चुनरी, साड़ी।
लानी दै मनपसंद सखी रे।
पिया बनी हेमंत सखी रे।
हमरो झुमका।
हमरो ठुमका।
हुनका बड़ी पसंद सखी रे।
पिया बनी हेमंत सखी रे।
हमरा खातिर महल अटारी।
एक दिन देलकै सबकुछ वारी।
नञ् राजा नञ् रंक सखी रे।
पिया बनी हेमंत सखी रे।
ज्ञानी, ध्यानी, बड़ी बखानी।
जगत जननी कहै घर के जनानी।
नञ् साधु नञ् संत सखी रे।
पिया बनी हेमंत सखी रे।
खुशी-खुशी दिन बीतै, रात मिलै आराम।
हर नारी के पति मिलै, हमरै रङ हे राम!
बात छेकै सच, नञ् छेकै मनगढ़ंत सखी रे।
पिया बनी हेमंत सखी रे।