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पिया मोरा गइले सखि हे पुरूबी बनिजीया / महेन्द्र मिश्र

पिया मोरा गइले सखि हे पुरूबी बनिजीया से दें के गइलें ना।
एगो सुगना खेलवनारामसे दे के गइलें ना।
तोहरा के देबों सुगना दूध भात खाओ से ले के सुतबों ना।
दुनो जोबना का बीचे राम से लेके सुतबों ना।
धरी रात बीतलें पहर रात बीतलें से काटे लगलें ना।
मोरा चोलिया के बंदवा राम से काटे लगलें ना।
एक मन करें सुगना धई के पटकिती से दोसर मनवाँ ना।
हमरा पिया के खेलवना से दोसर मनवाँ ना।
उड़ल-उड़ल सुगना गइलें पुरूबवा से जाके बइठेना।
मोरा पिया के पगरिया से जाके बइठेना।
पगरी उतारी पीया जांघे बइठवले से पूछे लगलें ना।
आपना घरवा के बतिया राम से पूछे लगलें ना
कहत महेन्दर सुनी सुगना के बतिया पिया सुसुके लगलें ना।
सुनि के धनिया के हलिया पियवा सुसुके लगले ना।