पिया सम्ह के बोलऽ बोली / सिलसिला / रणजीत दुधु
होलो आधा आधी आरक्षण सम्हर के बोलऽ बोली।
अब नय सहबो तोहर घुड़की, आउ नय सहबो तोहर ठिठोली॥
ढेरो दिन पीला सराब, आउ बकला अलबल गारी
अब फुँक्के पड़तो ई चुल्हा, फिच्चे पड़तो साया साड़ी॥
मिटल विषमता अयलो समता, फटलो अंधविश्वासी खोली।
होलो आधा आधी आरक्षण सम्हर के बोलऽ बोली॥
अब हम जयबो थाना बलउक तों खेलयहऽ घर में बुतरू।
गाय-गोरू-गोबर-गोयठा कर, चरइहा जाके पठरू॥
मन होतो तऽ ढोबयबो झोला, मगर नय देबो झोली।
होलो आधा आधी आरक्षण सम्हर के बोलऽ बोली॥
हम सब दिन चुपचाप सहलूँ, धड़को काहे तोर जिया।
बड़ी दिन तों मालिक रहला, अब नउकर बन जा पिया॥
पुरान होलो तोर धोती कुरता, नया होल मोर चोली।
होलो आधा आधी आरक्षण सम्हर के बोलऽ बोली॥
अब न´ होतइ भू्रण हत्या, न´् होतइ दहेज के माँग।
बेटी से न´ धरती होत गहिर, न´् कहतई दयबी डाँग॥
निरवंश कहके अब न´ कोय, करतई केकरो ठिठोली।
होलो आधा आधी आरक्षण सम्हर के बोलऽ बोली॥