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पिय दर्शन दो इक बार / सोना श्री

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एक बार तुमसे मिलूँ, पूरी कर दो चाह।
प्रियतम! अब तुम थाम लो, उर का प्रेम प्रवाह।।

पीड़ा जब मन में भरी, क्या भाए संसार?
प्रीतम सुधि में मन दुखी, करता रहा पुकार।।

लेती जब-जब साँस हूँ, आते हो तुम याद।
तुम बिन तेरी याद यह, भरती हृदय विषाद।।

आँखों में आशा लिए, जाऊँगी पिय द्वार।
कब से उर में चाह है, हो पिय से अभिसार।।

विरह-पीर मन में बसी, पिय-पिय मन के बैन।
पिया-दर्श आतुर नयन, रोते हैं दिन-रैन।।

हृदय पपीहा पीर से, रहने लगा उदास।
पी-पी रट कहता पिया, आओ मेरे पास।।

पिय-पिय अंतर कह रहा, नयन बह रही धार।
पिय! इस जीवन के लिए, दर्शन दो इक बार।।