पिसे हैं दिल ज़्यादातर हिना से / मरदान अली ख़ान 'राना'
पिसे हैं दिल ज़्यादातर हिना<ref>मेंहदी</ref> से
चला दो गाम<ref>क़दम</ref> भी जब वो अदा से
वो बुत आए इधर भी भूल कर राह
दुआ ये माँगता हूँ मैं ख़ुदा से
हिजाब उसका हुआ शब मअनी-ए-दीद<ref>दर्शन की तरह</ref>
नक़ाब उल्टी न चेहरे की हया से
इशारा ख़ंजर-ए-अबरू<ref>ख़ंजर जैसी भौंहें</ref> का बस<ref>काफ़ी</ref> था
मुझे मारा अबस<ref>बेकार/फ़िज़ूल में</ref> तेग़-ए-जफ़ा<ref>बेवफ़ाई की तलवार</ref> से
बहुत बल खा रही है ज़ुल्फ़-ए-जानाँ<ref>प्रियतमा की ज़ुल्फ़</ref>
बचेगी जान क्यूँकर<ref>कैसे</ref> इस बला से
है बेहतर इक करिश्मे में हों दो काम
मदीने जाऊँ राह-ए-कर्बला से
ख़ुदा जब बे-तलब<ref>बग़ैर मांगे</ref> बर<ref>पूरा करना</ref> लाए मक़सद
उठाऊँ क्यूँ न हाथ अपने दुआ से
'निज़ाम' अब उक़दा-ए-दिल<ref>दिल का मसअला</ref> क्यूँ न हल हों
मुहब्बत है तुझे मुश्किल-कुशा<ref>मुश्किल दूर करने वाला</ref> से