पींपीं, पींपीं, टरटर ढम / हरीश प्रधान
पींपीं, पींपीं, टरटर ढम
आगे कदम, बढ़ाते हम
अब तक प्यारे गीत सुनाये
अब ललकार सुनाते हम
खबरदार हों, देश के दुश्मन
अब तलवार उठाते हम
पींपीं, पींपीं, टरटर ढम।
आगे कदम बढ़ाते हम।
धोखा देकर वार करें
समझो ऐसे डरपोक नहीं
भाई कह कर गोली दागें
समझो ऐसे मक्कार नहीं
नन्हें-नन्हें हम बालक भी
अभिमन्यु हैं बलशाली हैं
आज़ादी के मतवाले हैं
फुलवारी के सब माली हैं
सब मिलकर कदम बढ़ाते जब
दुश्मन को मार भगाते हम
ख़बरदार हों देश के दुश्मन
अब तलवार उठाते हम
पींपीं, पींपीं, टरटर ढम।
आगे कदम, बढ़ाते हम।
जिसने सीमा लांघी, उसकी
उसकी सारी फौज सुला देंगे
हम भारत के नन्हें मुन्हें
सबके होश भुला देंगे
सारी ऐंचक तान समझा लो
सिर अपना धुन जायेगी
हमसे जो टकराये तो-
सिट्टी-पिट्टी गुम हो जायेगी
अब शेर इरादे जाग गये
सुन लो, हुंकार लगाते हम
ख़बरदार हों देश के दुश्मन
अब तलवार उठाते हम
पींपीं, पींपीं, टरटर ढम।
आगे कदम बढ़ाते हम।
गुरु गोविन्दसिंह के वीर पुत्र
मरने से नहीं डरेंगे हम
आखिर दम तक नापाक इरादे
सबके दफन करेंगे हम
हम अपनी जि़द के पक्के हैं
दुश्मन की गर्दन मोड़ेंगे
पीछे जिसके पड़ जांय-
कयामत तक ना उसको छोड़ेंगे
भूले से इधर नहीं आना
सब मिल किलकार लगाते हम
खबरदार हों, देश के दुश्मन
अब तलवार उठाते हम
पींपीं, पींपीं टरटर ढम।
आगे कदम बढ़ाते हम।