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पीछे छूटी आँखें / चंद्रभूषण

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सब पूछ रहे थे मुझ से

इसमें ऐसा क्या है

ऐसा क्या है,

सोच-सोचकर जिसको

अब तक मेरी आँख छलकती है


कैसे मैं समझाता उनको

इतनी उलझी बात

कि जब-जब डूब रहा होता है

दिल अंधियारों में


अंधियारों में जब

दिल के उतने ही करीब

ठंडी ख़ुशहाली की तस्वीरें

कभी सुनहरी कभी रुपहली

नाच रही होती हैं देने को सुकून


तब-तब मुझको बेचैन बनाती

पागल जैसा कर जाती

उन पीछे छूटी

धुंध भरी सी आँखों में

आज़ादी की इक नन्हीं-सी

कंदील झलकती है