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पीछे / मुइसेर येनिया
Kavita Kosh से
मैं अपने दुःख ढो रही हूँ एक चींटी की तरह
एक जगह से
दूसरी जगह
खुद के भीतर
मेरे भीतर साँस लेने को भी जगह नहीं !
आग की स्मृति
— जो —
दिख रही है मेरी देह पर
इतनी लम्बी !
इस दुनियां के
किसी पुराने मेहमान की तरह
मैं उसमे साँस भरती हूँ
हवा बिखेर देती है
बाकी दुनियां को
पीछे
मेरी आत्मा के बीज
सूख रहे हैं भीतर ही भीतर
— बेघर मनुष्य की तरह
जो
जीने और मरने
दोनों से बचत है —
कामनाएँ भी मर चुकी हैं
सामने धरती है
दफ़न होने के लिए ।