भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पीठी के गीत / 4 / राजस्थानी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सुन सुन रे जोधाणा रा तेली, थारी घाणी केसर और किस्तूरी।
मांय घाली जायफल और जावत्री, ओ तेल बनड़ा रे अंग चढ़सी।
दमड़ा वांका दादासा भर देसी, लेखो वांकी दादीसा भर लेसीं
सुण-सुण ओ जयपुरा रा तेली, थारी घाणी केसर ने किस्तुरी।
ओ मांय घाली मरबो ने मखतुली।
मांय घाली जायफल और जावत्री, ओ तेल बनड़ा रे अंग चढ़सी।
दमड़ा वांका बाबाजी भर देसी, लेखो वांकी मायां कर लेसी।
दमड़ा वांका बीराजी भर देसी, लेखो वांकी भाभियां कर लेसी।