भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पीठ कोरे पिता-16 / पीयूष दईया

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

क्या सच्ची है कविता कि आत्मा में आ गया हूं

सूत के सात धागे लपेटे
पीपल के वृक्ष में ज्यों

मां है
पौ फटने से पहले

मुझ में देवता का कोई विग्रह नहीं है