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पीठ कोरे पिता-16 / पीयूष दईया
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क्या सच्ची है कविता कि आत्मा में आ गया हूं
सूत के सात धागे लपेटे
पीपल के वृक्ष में ज्यों
मां है
पौ फटने से पहले
मुझ में देवता का कोई विग्रह नहीं है