भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पीठ कोरे पिता-25 / पीयूष दईया
Kavita Kosh से
अश्रृव्य शब्द के
श्री विग्रह की अभ्यर्थना में
प्रस्तुत
धागा है
मणि के इन्तज़ार में
(अ) नेक
पिरो लिया जाय मिलते ही
माला में
कल्याण के लिए
पिता
जपता रहूंगा
कौन जाने कब फेरा लग जाय