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पीठ को मेरी थपथपाती है / शोभा कुक्कल
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पीठ को मेरी थपथपाती है
याद मां की मुझे दिलाती है
मां के जैसी है वो बहन मेरी
गोद में रख के सर सुलाती है
जख़्म देती है जो मुझे दुनिया
उन पे मरहम सा वो लगाती है
जब कभी मैं उदास होती हूँ
ख़ाब दिल में नया जगाती है
जब गरेबाँ हो सब्र का सदचाक
वो मिरा हौसला बढ़ाती है
राजी रहना रज़ा नहीं उसकी
बस यही पाठ वो पढ़ाती है
डोल जाये जो हौसला मेरा
पत्थरों में ख़ुदा दिखाती है
आस की इक किरन है जो हरदम
मेरी राहों को जगमगाती है
ग़म हो कितने ही मेरे सीने में
बोझ वो उनका ख़ुदा उठती है
साया करती है अपने आँचल का
धूप जिस दम मुझे सताती है
पत्थरों की है बारिशें शोभा
ज़िन्दगी फिर भी गीत गति है।