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पीड़ाओं के गट्ठर / एक बूँद हम / मनोज जैन 'मधुर'

जीवन भर
सपने सिरहाने
रख कर सोए हैं

बार-बार टूटी है मॅंगन
मन की इच्छा की
सुख के कदम पड़े कब घर में
बड़ी प्रतिक्षा की
नरम पलक पर पीड़ाओं के
गट्ठर ढोए हैं

कठिन परीक्षा समय शिकारी
ने अपनी ली है
फूलों से दुश्मनी दोस्ती
कांटों की दी है
हमने नहीं बबूल किसी के
पथ में बोए हैं